Abstract
Indian Journal of Modern Research and Reviews, 2025;1(1):68-72
कोविड-19 के बाद हिंदी साहित्य में बदला हुआ सामाजिक परिप्रेक्ष्य: एक समीक्षात्मक अध्ययन
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Abstract
कोविड-19 महामारी ने न केवल वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली को प्रभावित किया है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू को गहराई से बदल दिया है। हिंदी साहित्य, जो हमेशा से समाज का दर्पण रहा है, इस परिवर्तन को अपने विविध रूपों में प्रतिबिंबित कर रहा है। यह शोध पत्र मार्च 2020 से मार्च 2023 की अवधि में कोविड-19 के बाद हिंदी साहित्य में आए सामाजिक परिप्रेक्ष्य के बदलाव का विश्लेषण करता है। अध्ययन में पाया गया है कि महामारी के तीन वर्षों के दौरान हिंदी साहित्य में एकाकीपन, डिजिटल विभाजन, स्वास्थ्य चेतना, पारिवारिक रिश्तों की पुनर्परिभाषा, और सामाजिक न्याय के नए आयाम प्रमुखता से उभरे हैं।
कोविड-19 महामारी ने हिंदी साहित्य में एक नए सामाजिक परिप्रेक्ष्य का जन्म दिया है जो पारंपरिक साहित्यिक मान्यताओं से भिन्न है। इस अध्ययन में महामारी के बाद के हिंदी साहित्य में आए मूलभूत परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया है। महामारी के दौरान उत्पन्न अकेलेपन, अनिश्चितता और मृत्यु-बोध ने साहित्यकारों की संवेदना को गहराई से प्रभावित किया है। सामाजिक असमानता, प्रवासी मजदूरों की समस्याएं, डिजिटल विभाजन और स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियां साहित्य के नए विषय बने हैं। पारस्परिक संबंधों में आई दूरी, पारिवारिक मूल्यों का पुनर्मूल्यांकन और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों ने साहित्यिक अभिव्यक्ति के नए आयाम खोले हैं। डिजिटल माध्यमों के बढ़ते प्रयोग ने साहित्य के प्रकाशन और वितरण में क्रांतिकारी बदलाव लाया है। यह शोध दर्शाता है कि कोविड-19 के बाद हिंदी साहित्य अधिक यथार्थवादी, संवेदनशील और सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ है, जो समकालीन मानवीय अनुभवों की प्रामाणिक अभिव्यक्ति प्रस्तुत करता है।
महामारी काल में प्रकृति के साथ मनुष्य के संबंधों की पुनर्व्याख्या भी हिंदी साहित्य की विशेषता बनी है। पर्यावरणीय चेतना, जैविक संतुलन और सतत विकास के विषय नई तीव्रता के साथ उभरे हैं। साहित्यकारों ने वैश्विक संकट के दौरान स्थानीयता की महत्ता को रेखांकित किया है, जिससे भारतीय संस्कृति और परंपराओं का गौरवगान नए रूप में प्रकट हुआ है। महिला लेखिकाओं की भूमिका इस काल में विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिन्होंने घरेलू हिंसा, कार्यक्षेत्र में महिलाओं की चुनौतियों और मातृत्व के नए आयामों को संवेदनशीलता से चित्रित किया है। युवा लेखकों ने करियर की अनिश्चितता, शिक्षा व्यवस्था में व्यवधान और भविष्य की चिंताओं को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है। इस प्रकार, कोविड-19 के बाद का हिंदी साहित्य न केवल सामाजिक दस्तावेज के रूप में कार्य करता है बल्कि मानवीय लचीलेपन और अनुकूलन क्षमता का प्रेरणादायक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
Keywords
कोविड-19, हिंदी साहित्य, सामाजिक परिप्रेक्ष्य, महामारी साहित्य, समकालीन लेखन