Abstract
Indian Journal of Modern Research and Reviews, 2024;2(7):76-80
प्रेमचंद के गबन में सामाजिक चेतना और मानवीय संवेदनाएँ
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Abstract
प्रेमचंद (1880–1936) हिंदी साहित्य के अग्रणी कथाकारों में से एक थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय समाज, राजनीति और संस्कृति के विविध पहलुओं को यथार्थवादी दृष्टिकोण से चित्रित किया। प्रस्तुत संकलन में आजादी (1930), महाजनी (1931), कायाकल्प (1932), यशोधरा (1933), नीला (1934), कर्मभूमि (1932), मंगलसूत्र (1933), शाम सवेरे (1934) और बड़े भाई साहब (1935) जैसी प्रमुख रचनाएँ शामिल हैं। इन कृतियों में सामाजिक विषमता, आर्थिक शोषण, स्त्री-पुरुष संबंध, नैतिक संघर्ष और स्वाधीनता आंदोलन के भावनात्मक व वैचारिक आयामों को रेखांकित किया गया है। प्रेमचंद की भाषा सहज, प्रभावी और जनभाषा के निकट है, जिससे उनके साहित्य में पाठकों के साथ गहरा भावनात्मक जुड़ाव स्थापित होता है। यह संग्रह हिंदी साहित्य के सामाजिक यथार्थ और सांस्कृतिक चेतना के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है।
Keywords
प्रेमचंद, गबन, मानव मूल्य, समाजशास्त्रीय अध्ययन, सामाजिक यथार्थ, नैतिक संकट, भौतिकवाद, उपभोक्तावाद, प्रतिष्ठा की लालसा, पारिवारिक संबंध, नैतिक पतन, सामाजिक संरचना, स्त्री-पुरुष संबंध, भारतीय समाज, आर्थिक दबाव, यथार्थवाद, मानवीय संवेदनाएँ, त्याग, ईमानदारी, सामाजिक परिवर्तन।