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Indian Journal of Modern Research and Reviews, 2024;2(8):22-27

समकालीन हिंदी कविता (1990-2000) में समकालीन समस्या और यथार्थ

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समकालीन हिंदी कवियों ने अपने समय और समाज की समस्याओं का यथार्थ की ठोस भूमि पर खड़े होकर चित्रण किया है। उन्होंने अपने समय की विसंगतियों, विडम्बनाओं, विकृतियों को वाणी दी है। समकालीन समस्या से तात्पर्य है, सृजनात्मक दौर अथवा समय की वह प्रमुख समस्या, जो तत्कालीन समाज में प्रस्तुत होती है।उन्होंने अपने समय की विसंगतियों, विडम्बनाओं, विकृतियों को वाणी दी है। मानव समाज जिस भय तथा तनाव के वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहा है, उसमें उसका जीवन उल्लास का पर्याय नहीं बल्कि घुटन और यंत्रणा की कथा है। समाज को नई दिशा और चेतना देने का कार्य समकालीन हिंदी कविता ने किया है। यह कविता उन सभी सामाजिक संदर्भों, प्रश्नों और घटनाओं का उल्लेख करती है जिनसे मानव की प्रगति अवरुद्ध है।

Keywords

समाज, चेतना, समस्या, यथार्थ, समकालीन कविता आदि।